Ram Mandir Advocate- कौन है केशव परासरन, जिन्हें कहा जा रहा श्रीमान के हनुमान


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के. परासरन, जो एक प्रतिष्ठित वकील हैं, उन्हें श्री राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का अध्यक्ष चुना गया है। परासरन ने रामजन्मभूमि विवाद मामले में हिंदू पक्ष की ओर से पैरवी की थी और उनकी इस भूमिका के लिए उन्हें देश भर में पहचान मिली। उनके वकालत के कौशल और ज्ञान की प्रशंसा की जाती है, और उन्होंने इस महत्वपूर्ण मामले में अपनी विशेषज्ञता से योगदान दिया है।

अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर के लिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित इस ट्रस्ट में कुल 15 सदस्य होंगे, जिनमें 9 स्थायी और 6 नामित सदस्य शामिल हैं। परासरन के घर को इस ट्रस्ट के दफ्तर के रूप में चुना गया है, जो उनकी इस महत्वपूर्ण भूमिका की पहचान है। उनकी विशेषज्ञता और अनुभव इस ट्रस्ट के कार्यों में अमूल्य योगदान देगा।

Ram Mandir Advocate- कौन है केशव परासरन, जिन्हें कहा जा रहा श्रीमान के हनुमान
Ram Mandir Advocate- कौन है केशव परासरन, जिन्हें कहा जा रहा श्रीमान के हनुमान

कौन है केशव परासरन

भारतीय सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित वकील और पूर्व महाधिवक्ता, श्री के. परासरन, जिन्होंने अयोध्या की भूमि विवाद में हिंदू पक्षकारों का सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व किया था, अब राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पहले ट्रस्टी के तौर पर नियुक्त किए गए हैं, जिसे हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया है।

92 वर्षीय परासरन नई दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-1 में स्थित अपने आवास पर, जिसका पता आर-20 है, ट्रस्ट के पंजीकृत कार्यालय की मेजबानी भी करेंगे।

तमिलनाडु के श्रीरंगम में 1927 में जन्मे, परासरन एक धार्मिक हिंदू परिवार से संबंधित हैं। उनके पिता, केशव अयंगर, एक वकील और वैदिक विद्वान थे। परासरन के तीन पुत्र – मोहन, सतीश और बालाजी – भी विधि क्षेत्र में हैं। मोहन परासरन ने यूपीए-2 सरकार के दौरान कुछ समय के लिए महाधिवक्ता का पद संभाला था। परिवार की चौथी पीढ़ी भी इसी क्षेत्र से जुड़ी है।

परासरन ने 1958 में अपनी वकालती प्रैक्टिस सुप्रीम कोर्ट में शुरू की। आपातकाल के दौरान, वे तमिलनाडु के महाधिवक्ता थे और 1980 में भारत के महाधिवक्ता नियुक्त किए गए थे। उन्होंने 1983 से 1989 तक भारत के महान्यायवादी के रूप में काम किया।

के. परासरन राम जन्मभूमि मामले में एक वरिष्ठ वकील की भूमिका

93 वर्ष की उम्र में भी, वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन ने राम जन्मभूमि विवाद में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व किया। पूर्व अटॉर्नी जनरल और एक अनुभवी वकील के रूप में, परासरन ने इस मुद्दे पर अपनी गहन विश्लेषणात्मक क्षमता और वकालत की प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया।

फैसला आने के बाद, परासरन ने अपने आध्यात्मिक जुड़ाव को उजागर किया, जिसमें उन्होंने भगवान राम के प्रति अपनी गहरी आस्था का उल्लेख किया। उन्होंने इस मामले को अपने हृदय के बहुत करीब बताया और इसे लड़ने का कारण भी इसी आध्यात्मिक लगाव से प्रेरित था।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की रोजाना सुनवाई के दौरान, परासरन ने प्रत्येक पहलू पर गहराई से शोध और तैयारी की। वे प्रतिदिन सुबह 10:30 बजे से देर शाम तक कानूनी रणनीतियों पर काम करते रहते थे, जिससे उनकी विशेषज्ञता और समर्पण का पता चलता है। उनकी इस भूमिका ने न केवल इस मुद्दे में, बल्कि भारतीय कानूनी इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।

के. परासरन की टीम एक समर्पित और प्रेरणादायक दल

के. परासरन के नेतृत्व में एक सक्षम और प्रतिबद्ध टीम काम कर रही थी, जिसमें पीवी योगेश्वरन, अनिरुद्ध शर्मा, श्रीधर पोट्टाराजू, अदिति दानी, अश्विन कुमार डीएस और भक्ति वर्धन सिंह शामिल थे। इस टीम ने परासरन की लगन और समर्पण से प्रेरणा ली और अयोध्या मामले में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।

परासरन का इस मामले से गहरा जुड़ाव था, और उन्होंने इसके हर एक पहलू पर व्यापक अध्ययन किया था। अयोध्या मामले की महत्वपूर्ण तारीखें और घटनाएं उन्हें मुंहजबानी याद थीं।

अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान, परासरन का सामना मुस्लिम पक्ष के प्रतिष्ठित वकील राजीव धवन से हुआ। धवन अपने शक्तिशाली तर्कों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन परासरन ने अपनी शांति और संयम को कायम रखा। यहां तक कि तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने गरिमामयी व्यवहार को बनाए रखा, जिससे उनकी प्रोफेशनलिज्म की गहरी छाप पड़ी।

के. परासरन का संदेश

16 अक्टूबर को, जब सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई संपन्न हुई, के. परासरन ने एक महत्वपूर्ण पहल की। वे 15 मिनट तक प्रतीक्षा कर राजीव धवन से मिले, जिनके साथ उनका केस संबंधी विचार-विमर्श हुआ। इस मुलाकात के दौरान दोनों वकीलों ने आपस में चर्चा की और साथ में फोटो भी खिंचवाई।

परासरन का यह कदम एक स्पष्ट संदेश देता है कि कोर्टरूम में भले ही वकील एक-दूसरे के विरुद्ध तर्क देते हों, लेकिन वे व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे के विरोधी नहीं होते। यह प्रदर्शित करता है कि अदालत में वकालत और विचार-विमर्श पेशेवर गतिविधियां हैं और इसे व्यक्तिगत विरोध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। परासरन का यह संदेश वकालत के पेशे के प्रति गहरे सम्मान और पेशेवर सौहार्द की भावना को दर्शाता है।

के. परासरन का अयोध्या में भावुक स्वागत

जब श्रीराम जन्मभूमि परिसर में वरिष्ठ वकील और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य के. परासरन पहुंचे, तो उनका गरिमामय स्वागत किया गया। इस अवसर पर, उन्होंने मंदिर निर्माण की जानकारी प्राप्त की। इस दौरान, परासरन ने ट्रस्ट के महासचिव चंपक राय को गर्मजोशी से गले लगाया। राम मंदिर निर्माण की प्रगति को देखकर उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक आए। यह क्षण उनके लिए और सभी उपस्थित लोगों के लिए भावनात्मक और यादगार था।

के. परासरण तमिलनाडु के गौरवशाली विधिवेत्ता

के. परासरण, जिनका जन्म 9 अक्टूबर 1927 को तमिलनाडु के प्रसिद्ध शहर श्रीरंगम में हुआ, एक वकील के परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वे अब 96 वर्ष के हैं और उन्होंने अपना वकालती करियर 1958 में शुरू किया था। हिंदू धर्मशास्त्रों के ज्ञानी, परासरण दो बार भारत के अटॉर्नी जनरल के पद पर आसीन रहे हैं। उन्हें विधि क्षेत्र में ‘पितामह’ के सम्मानित उपनाम से भी जाना जाता है।

इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक, अनेक राजनीतिक हस्तियों ने उनकी वकालती दक्षता और दलीलों का फायदा उठाया है। उनकी गहन विधि ज्ञान और अनुभव ने उन्हें विधि जगत में एक विशेष स्थान दिलाया है।

FAQ

1. Q: के. परासरन कौन हैं?

   A: के. परासरन एक प्रसिद्ध भारतीय वकील और पूर्व अटॉर्नी जनरल हैं।

2. Q: के. परासरन ने किस प्रसिद्ध मामले में हिंदू पक्ष की वकालत की?

   A: उन्होंने अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में हिंदू पक्ष की वकालत की।

3. Q: के. परासरन की उम्र क्या है?

   A: के. परासरन की उम्र लगभग 93 वर्ष है।

4. Q: के. परासरन ने अयोध्या मामले में किस वकील के खिलाफ बहस की थी?

   A: के. परासरन ने अयोध्या मामले में राजीव धवन के खिलाफ बहस की थी।

5. Q: के. परासरन को किस पद के लिए नियुक्त किया गया है?

   A: के. परासरन को श्री राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।

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