साइको शायर अभिजीत बालकृष्ण मुंडे कौन हैं? राम पर वायरल हो रही इस कविता में ऐसा क्या है?


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इन दिनों सोशल मीडिया पर भगवान श्रीराम को लेकर एक कविता काफी चर्चा में है, जिसे साइको शायर नामक एक शायर ने लिखा है। यह कविता उनके यूट्यूब चैनल पर 25 दिसंबर को अपलोड की गई थी और अब तक इसे 21 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है।

साइको शायर अभिजीत बालकृष्ण मुंडे कौन हैं? राम पर वायरल हो रही इस कविता में ऐसा क्या है?
साइको शायर अभिजीत बालकृष्ण मुंडे कौन हैं? राम पर वायरल हो रही इस कविता में ऐसा क्या है?

साइको शायर आखिर कौन है ?

साइको शायर, जिनका असली नाम अभिजीत बालकृष्ण मुंडे है, महाराष्ट्र के मराठवाड़े इलाके के अंबाजोगी गांव से हैं। अभिजीत ने सरकारी कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और उसी दौरान कविता लिखने लगे। उन्होंने इतिहास से संबंधित किताबें भी लिखी हैं, जैसे ‘शंभू गाथा’ और ‘छत्रपति संभाजी महाराज की पूरी जीवनी’।

कविता की विशेषता और उसकी लोकप्रियता –

इस कविता की खासियत यह है कि अभिजीत इसे शुरू करने से पहले दर्शकों से कहते हैं कि राम शब्द सुनते ही जो पहला विचार मन में आता है, उसे बांध कर रखें, वे पूछेंगे। इसके बाद वे 1 से 9 तक गिनती गिनते हैं और उसके बाद रुक जाते हैं, जिसके बाद कविता शुरू होती है। यह कविता इसलिए लोकप्रिय हो रही है क्योंकि इसमें भगवान श्रीराम के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना व्यक्त की गई है।

श्रीराम और अयोध्या के संदर्भ में कविता का महत्व –

अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण और उनकी प्राण-प्रतिष्ठा के समय यह कविता खास महत्व रखती है। इसके माध्यम से लोगों में श्रीराम के प्रति आस्था और भक्ति की भावना और भी प्रबल होती है।

इस प्रकार, साइको शायर ने अपनी इस कविता के जरिए लोगों के दिलों में श्रीराम के प्रति भक्ति का संचार किया है, जिससे यह कविता सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई है।

हाथ काट कर रख दूंगा

ये नाम समझ आ जाए तो

कितनी दिक्कत होगी पता है

राम समझ आ जाए तो

राम राम तो कह लोगे

परराम सा दुख भी सहना होगा

पहली चुनौती ये होगी के

मर्यादा में रहना होगा

और मर्यादा में रहना

मतलब कुछ खास नहीं कर जाना है..

बस..बस त्याग को गले लगाना है

औरअहंकार जलाना है

अब अपने रामलला के खातिर

इतना ना कर पाओगे

अरे शबरी का जूठा खाओगे

तो पुरुषोत्तम कहलाओगे

काम क्रोध के भीतर रहकर

तुमको शीतल बनाना होगा

बुद्ध भी जिसकी छांव में बैठे

 वैसा पीपल बनाना होगा

बनना होगा ये सब कुछ और

 वो भी शून्य में रहकर प्यारे

तब ही तुमको पता चलेगा..

थे कितने अद्भुत राम हमारे

सोच रहे हो कौन हूं मै,?

चलो.. बता ही देता हूंतु

मने ही तो नाम दिया थामैं..

पागल कहलाता हूंनया नया हूं

 यहां पे तो ना पहले किसी को देखा है

वैसे तो हूं त्रेता से.. मुझे कृ..

किसने कलयुग भेजा है

भई बात वहां तक फैल गई है

की यहां कुछ तो मंगल होने को है

के भरत से भारत हुए राज मेंसुना है

राम जी आने को हैं

बड़े भाग्यशाली हो तुम सबनहीं,

वहां पे सब यहीं कहते है

के हम तो रामराज में रहते थे..

पर इन सब में राम रहते हैयानी..

तुम सब में राम का अंश छुपा है.?

नहीं मतलब वो..तुम में आते है रहने?

सच है या फिर गलत खबर?

गर सच ही है तो क्या कहने

तो सब को राम पता ही होगा

घर के बड़ों ने बताया होगा..

तो बताओ..बताओ फिर कि क्या है

रामबताओ फिर कि क्या है राम..

बताओ…अरे पता है तुमको क्या है राम..?

या बस हाथ धनुष तर्कश में बाण..

या बन में जिन्होंने किया गुजाराया

फिर कैसे रावण मारालक्ष्मण

जिनको कहते भैया

जिनकी पत्नी सीता मैया

फिर ये तो हो गई

वो ही कहानीएक था राजा एक थी रानी

क्या सच में तुमको राम पता है

या वो भी आकर हम बताएं?

बड़े दिनों से हूं यहां पर..

सबकुछ देख रहा हूं

कबसेप्रभु से मिलने आया था मै..

उन्हें छोड़ कर मिला हूं सब से

एक बात कहूं गर बुरा ना मानो

नहीं तुम तुरंत ही क्रोधित हो जाते हो

पूरी बात तो सुनते भी नहीं..

सीधे घर पर आ जाते हो

ये तुम लोगों के..

नाम जपो में..

पहले सा आराम नहींये तुम लोगों के..

 नाम जपो में..पहले सा आराम नहीं

इस जबरदस्ती के जय श्री राम में सब कुछ है..

बस राम नहीं!

ये राजनीति का दाया बायां जितना मर्ज़ी खेलो तुम

ये राजनीति का दाया बायां

जितना मर्ज़ी खेलो

तुमचेतावनी को लेकिन मेरी

अपने जहन में डालो तुम

निजी स्वार्थ के खातिर गर

कोई राम नाम को गाता हो

तो खबरदार गर जुर्रत की..

और मेरे राम को बांटा तो

भारत भू का कवि हूं मैं..

तभी निडर हो कहता हूं

राम है मेरी हर रचना में

मै बजरंग में रहता हूं

भारत की नीव है

कविताएंऔर सत्य

हमारी बातों में

तभी कलम हमारी तीखी

और..साहित्य..हमारे हाथों में!

तो सोच समझ कर राम कहो

तुमये बस आतिश का नारा नहीं

जब तक राम हृदय में नहीं..

तुम ने राम पुकारा नहींराम-

कृष्ण की प्रतिभा पर पहले भी

खड़े सवाल हुएये लंका और ये कुरुक्षेत्र..

यूं ही नहीं थे लाल हुएअरे प्रसन्न हंसना भी है

और पल पल रोना भी है

रामसब कुछ पाना भी है

और सब पा कर खोना भी है

रामब्रम्हा जी के कुल से होकर

जो जंगल में सोए होजो

अपनी जीत का हर्ष छोड़

रावण की मौत पे रोए हो

शिव जी जिनकी सेवा खातिर

मारूत रूप में आ जाए

शेषनाग खुद लक्ष्मण बनकर

जिनके रक्षक हो जाए

और तुम लोभ क्रोध अहंकार छल कपट

सीने से लगा कर सो जाओगे?

तो कैसे भक्त बनोगे उनके?

कैसे राम समझ पाओगे?

अघोर क्या है पता नहीं

और शिव जी का वरदान चाहिए

ब्रम्हचर्य का इल्म नहीं..

इन्हे भक्त स्वरूप हनुमान चाहिए

भगवा क्या है क्या ही पता

लहराना सब को होता है

पर भगवा क्या है वो जाने

जो भगवा ओढ़ के सोता है

राम से मिलना..

राम से मिलना..

राम से मिलना है ना तुमको..?

निश्चित मंदिर जाना होगा!

पर उस से पहले भीतर जा संग

अपने राम को लाना होगा

जय सिया रामऔर हां..

अवधपुरी का उत्सव है

कोई कसर नहीं..

सब खूब मनाना

मेरे प्रभु है आने वाले

रथ को उनकेखूब सजानावो..

द्वापर में कोई राह तके है

मुझे उनको लेने जाना है

चलिए तो फिर मिलते है,

हमें भी अयोध्या आना है.

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